13-02-99  ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

‘‘शिव अवतरण और एकानामी के अवतार’’

आज त्रिमूर्ति शिव बाप अपने अति प्यारे-प्यारे, मीठे-मीठे शालिग्राम बच्चों से मिलने आये हैं। आज के दिन शिव और शालिग्रामों का विशेष दिवस है। तो बाप को बच्चों से मिलकर खुशी हो रही है कि बच्चों का बर्थ डे बाप मनाने आये हैं और बच्चे कहते हैं कि हम बाप का बर्थ डे मनाने आये हैं। बाप को भी खुशी है, बच्चों को भी खुशी है। क्यों? क्योंकि यह बर्थ डे सारे कल्प में न्यारा और प्यारा है। सारे कल्प में ऐसा बर्थ डे किसका भी मनाया नहीं जाता है। बाप और बच्चों का साथ में एक ही समय पर बर्थ डे हो - यह और किसी भी समय वा किसी का भी होता ही नहीं है। तो पहले बापदादा बच्चों को पद्मपद्म- पद्मगुणा मुबारक दे रहे हैं। बच्चों की मुबारक तो अमृतवेले से बहुतबहुत दिल से, दिल की मुबारक बापदादा के पास पहुँच ही गई है। बापदादा इतने सब बच्चों को, सालिग्रामों को देख यही खुशी के गीत दिल में गाते हैं कि वाह सिकीलधे बच्चे वाह! वाह लाड़ले बच्चे वाह! वाह अलौकिक जन्म, अलौकिक बर्थ डे मनाने वाले वाह! तो बापदादा हर बच्चे के लिए वाह-वाह का गीत गा रहे हैं क्योंकि इतनी सारी विश्व की आत्माओं में से कितने थोड़े से आप बच्चे ऐसे पद्मापद्म भाग्यवान बने हो और आगे भी भाग्यवान रहेंगे। अमर भाग्यवान आधा कल्प रहेंगे। एक जन्म का वरदान नहीं है, अनेक जन्म अमर वरदानी बन गये। ऐसे बच्चों को अपना स्व-मान कितना स्मृति में रहता है? इस अलौकिक बर्थ डे वा अलौकिक जन्म का अखुट वर्सा बाप जन्मते ही बच्चों को देते हैं। जन्मते ही स्मृति का श्रेष्ठ तिलक हर बच्चे को बाप ने दे दिया है। तिलक लगा हुआ है ना? ब्राह्मण जीवन है तो तिलक भी अविनाशी है। ब्राह्मणों के मस्तक में तिलक, यह श्रेष्ठ भाग्य की निशानी है।

तो आप सभी और चारों ओर के बच्चे दूर बैठे भी बहुत उमंग-उत्साह से यह न्यारा और प्यारा बर्थ डे मना रहे हैं। मना रहे हैं ना? सभी खुश हो रहे हैं कि बाप हमारा बर्थ डे मना रहे हैं और हम बाप का मना रहे हैं। कितनी खुशी है! खुशी को माप सकते हैं? माप है? इस दुनिया में, इस अलौकिक खुशी का कोई माप करने का साधन निकला ही नहीं है। अगर आपको कहें कि सागर जितनी खुशी है? तो क्या कहेंगे? कि सागर तो कुछ भी नहीं है। अच्छा आकाश जितनी है? तो आकाश से भी ऊँचे आपका घर है, आपका सूक्ष्मवतन है। इसलिए कोई माप-तौल निकला नहीं है, न निकल सकता है। इतनी खुशी है तो एक हाथ की ताली बजाओ। (सभी ने ताली बजाई) खुशी है - इसमें तो सभी ने हाथ उठाया, मुबारक हो। अभी दूसरा प्रश्न है, (समझ गये हैं तो हँस रहे हैं) बापदादा हर बच्चे को सदा खिला हुआ रूहानी गुलाब देखने चाहते हैं। आधा खिला हुआ नहीं, सदा और फुल। खिला हुआ फूल कितना प्यारा लगता है। देखने में ही मजा आता है। और थोड़ा भी मुरझा जाता है तो क्या करते हो? किनारे कर लेते हो। बापदादा किनारे नहीं करते लेकिन वह स्वयं ही किनारे हो जाता है।

आज तो मनाने का दिन है ना! मुरली तो सदा सुनते ही हो। आज तो खूब खुशी में मन से नाचो और गाओ। मन से नाचो, पाँव से नहीं। पाँव से नाचना शुरू करेंगे तो घमसान हो जायेगा। लेकिन बापदादा देख रहे हैं कि बच्चे नाच भी रहे हैं और मीठे-मीठे बाप की महिमा और अपने अलौकिक महिमा के गीत भी बहुत गा रहे हैं। बाबा को आपके मन का आवाज़ पहुँच रहा है। सब देशों से आवाज़ आ रहा है। बाप का आवाज़ सुन भी रहे हैं और बाप भी उन्हों का आवाज़ सुन रहा है। बाप भी कहते हैं - हे विश्व के बहुत-बहुत स्नेही बच्चे खूब नाचो, खूब गाओ और काम ही क्या है! ब्राह्मणों का काम क्या है? योग लगाना भी क्या है? मेहनत है क्या? योग का अर्थ ही है आत्मा और परमात्मा का मिलन। तो मिलन में क्या होता है? खुशी में नाचते हैं। बाप की महिमा के मीठे-मीठे गीत दिल ऑटोमेटिक गाती है। ब्राह्मणों का काम ही यह है, गाते रहो और नाचते रहो। यह मुश्किल है? नाचना-गाना मुश्किल है? नहीं है ना। जिसको मुश्किल लगता है वह हाथ उठाओ। आजकल तो नाचने-गाने की सीज़न है, तो आपको भी क्या करना है? नाचो, गाओ। सहज है ना? सहज है तो काँध तो हिलाओ। मुश्किल तो नहीं है ना? जान-बूझ कर सहज से हटकर मुश्किल में चले जाते हो। मुश्किल है नहीं, बहुत सहज है क्योंकि बाप जानते हैं कि आधाकल्प मुश्किल की जीवन व्यतीत की है इसलिए इस समय सहज है। मुश्किल वाला कोई है? कभी-कभी मुश्किल लगता है? जैसे कोई चलते-चलते रास्ता भूलकर और रास्ते में चला जाए तो मुश्किल लगेगा ना। ज्ञान का मार्ग मुश्किल नहीं है। ब्राह्मण जीवन मुश्किल नहीं है! ब्राह्मण के बजाए क्षत्रिय बन जाते हो तो क्षत्रिय का काम ही होता है लड़ना, झगड़ना... वह तो मुश्किल ही होगा ना! युद्ध करना तो मुश्किल होता है, मौज मनाना सहज होता है।

डबल फॉरेनर्स मौज मनाने वाले हो ना! एक हाथ की ताली बजाओ। मौज में हो? वहाँ जाकर मूंझ तो नहीं जायेंगे? देखो, आज के शिव जयन्ति का महत्त्व दो बातों का है। एक इस दिवस पर व्रत रखते हैं। डबल फॉरेनर्स को तो मनाना ही नहीं पड़ा। भारत में ही मनाते हैं तो इस दिवस का महत्त्व है - व्रत रखना और दूसरा है जागरण करना। तो आप सबने व्रत भी ले लिया है ना? पक्का व्रत लिया है? या कभी कच्चा, कभी पक्का? कच्ची चीज़ अच्छी लगती है? पका हुआ सब अच्छा लगता है ना! तो व्रत क्या लिया है? बापदादा ने सबसे पहला व्रत कौन-सा दिया? जब स्मृति का तिलक लगा तो पहला-पहला व्रत कौन सा लिया? याद है ना? सम्पूर्ण पवित्र भव। बाप ने कहा और बच्चों ने धारण किया। तो पवित्रता का व्रत सिर्फ ब्रह्मचर्य का व्रत नहीं लेकिन ब्रह्मा समान हर संकल्प, बोल और कर्म में पवित्रता - इसको कहा जाता है ब्रह्मचारी और ब्रह्माचारी। हर बोल में पवित्रता का वायब्रेशन समाया हुआ हो। हर संकल्प में पवित्रता का महत्त्व हो। हर कर्म में, कर्म और योग अर्थात् कर्मयोगी का अनुभव हो - इस्को कहा जाता है ब्रह्माचारी। ब्रह्मा बाप को देखा हर बोल महावाक्य, साधारण वाक्य नहीं क्योंकि आपका जन्म ही साधारण नहीं, अलौकिक है। अलौकिकता का अर्थ ही है पवित्रता। तो रोज़ रात को अपना टीचर बनकर चेक करो और अपने को परसेन्टेज़ के प्रमाण अपने आपको ही मार्क्स दो। बनना 100 परसेन्ट है। लेकिन हर रोज़ अपने आपको देखो, दूसरे को नहीं देखना। बापदादा ने देखा है कि अपने बजाए दूसरों को देखने लग जाते हैं, वह सहज होता है। तो अपने को देखो कि आज के दिन संकल्प, बोल और कर्म में कितनी परसेन्ट रही?

आप लोगों ने इस वर्ष चारों ओर क्या सन्देश दिया है? परिवर्तन सभी फंक्शन में सुनाया है। जहाँ तहाँ भाषण किया है तो परिवर्तन के टॉपिक पर बहुत अच्छे-अच्छे भाषण किये हैं। तो इस वर्ष चारों ओर सेवा में औरों को भी परिवर्तन का लक्ष्य बहुत अच्छे धूमधाम से दिया है, बापदादा खुश हैं। तो आप अपने लिए भी यह चेक करो कि हर रोज़, हर दिन क्या परसेन्टेज़ में परिवर्तन हुआ? परिवर्तन चढ़ती कला का हो, गिरती कला का नहीं। बापदादा भी हर एक बच्चे का चार्ट देखता है। आप सोचेंगे सभी बच्चों का देखते हैं या कोई विशेष का देखते हैं! बापदादा सभी बच्चों का चार्ट कभी-कभी देखते हैं, रोज़ नहीं देखते लेकिन कभी-कभी देखते हैं - चाहे वह लास्ट है, चाहे फास्ट है। सभी हँस रहे हैं तो बापदादा ही सुना देवे कि क्या चार्ट है? आज का दिन मनाने का है ना, इसलिए नहीं सुनाते हैं। लेकिन आगे के लिए इशारा दे रहे हैं कि आज के दिन का जो महत्त्व है व्रत लेना अर्थात् दृढ़ संकल्प लेना। व्रत को कभी सच्चे भक्त तोड़ते नहीं हैं। तो बापदादा बच्चों को फिर से आगे के लिए इशारा दे रहे हैं कि अभी भी पहला फाउण्डेशन संकल्प शक्ति कभी-कभी वेस्ट ज्यादा और निगेटिव वेस्ट से थोड़ा कम है। इस संकल्प शक्ति का उपयोग जितना स्व प्रति वा विश्व के प्रति करना है उतना और बढ़ाओ क्योंकि संकल्प के आधार पर बोल और कर्म होता है तो संकल्प शक्ति का परिवर्तन करो। जो वेस्ट और निगेटिव जाता है, उसे परिवर्तन कर विश्व-कल्याण के प्रति कार्य में लगाओ। बापदादा संकल्प के खज़ाने को सर्व श्रेष्ठ मानते हैं इसलिए इस संकल्प के खज़ाने प्रति एकानामी के अवतार बनो। आज के दिन को अवतरण का दिन कहा जाता है तो बापदादा की सभी बच्चों प्रति यही शुभ आशा है कि आज के दिन शिव अवतरण के साथ आप सभी एकानामी के  अवतार बनो। संकल्प में एकानामी की अर्थात् वेस्ट से बचाया, तो और सभी खज़ाने ऑटोमेटिक बच जायेंगे। तो 99 में क्या होगा? 99 चालू हो गया। पहले सोच रहे थे, 99 में क्या होगा? कुछ हुआ क्या? फरवरी तो आ गई। अगर होगा भी तो आपको क्या है? आपको कोई नुकसान है? भय है? क्या होगा, उसका भय होता है? आपके लिए अच्छा ही होगा। दुनिया के लिए कुछ भी हो जाए आपको निर्भय और हर्षितमुख हो खेल देखना है। खेल में खून भी दिखाते हैं तो प्यार भी दिखाते हैं। लड़ाई भी दिखाते हैं तो अच्छी बातें भी दिखाते हैं। फिर खेल में भय होता है क्या? क्या होगा, क्या हुआ, क्या हुआ? यह सोचते हैं क्या? मजे से बैठकर देखते हैं। तो यह भी बेहद का खेल है। अगर जरा भी भय वा घबराहट होगी - क्या हो गया, क्या हो गया... ऐसा तो होना नहीं चाहिए, क्यों हो गया तो ऐसी स्थिति वाले को इफेक्ट आयेगा। अच्छे में अच्छी स्थिति और गड़बड़ की स्थिति में खुद भी गड़बड़ में आ जायेंगे, हलचल में आ जायेंगे। इसलिए 99 हो या 2 हज़ार हो, आपको क्या है? होने दो खेल। मजे से देखो। घबराना नहीं। हाय यह क्या हो गया! संकल्प में भी नहीं आये। सब पूछते हैं 99 में क्या होगा? कुछ होगा, नहीं होगा। बापदादा कहते हैं आप लोगों ने ही प्रकृति को सेवा दी है कि खूब सफाई करो, उसको लम्बा-लम्बा झाडू दिया है, सफा करो। तो घबराते क्यों हो? आपके आर्डर से वह सफाई करायेगी तो आप क्यों हलचल में आते हो? आपने ही तो आर्डर दिया है। तो अचल-अडोल बन मन और बुद्धि को बिल्कुल शक्तिशाली बनाए अचल-अडोल स्थिति में स्थित हो जाओ। प्रकृति का खेल देखते चलो। घबराना नहीं। आप अलौकिक हो, साधारण नहीं हो। साधारण लोग हलचल में आयेंगे, घबरायेंगे। अलौकिक, मास्टर सर्वशक्तिवान आत्मायें खेल देखते अपने विश्व-कल्याण के कार्य में बिजी रहेंगे। अगर मन और बुद्धि को फ्री रखा तो घबरायेंगे। मन और बुद्धि से लाइट हाउस हो, लाइट फैलायेंगे, इस कार्य में बिजी रहेंगे तो बिजी आत्मा को भय नहीं होगा, साक्षीपन होगा; और कोई भी हलचल हो अपने बुद्धि को सदा ही क्लीयर रखना, क्यों-क्या में बुद्धि को बिजी वा भरा हुआ नहीं रखना, खाली रखना। एक बाप और मैं.. तब समय अनुसार चाहे पत्र, टेलीफोन, टी.वी. वा आपके जो भी साधन निकले हैं, वह नहीं भी पहुँचे तो बापदादा का डायरेक्शन क्लीयर कैच होगा। यह साइंस के साधन कभी भी आधार नहीं बनाना। यूज़ करो लेकिन साधनों के आधार पर अपनी जीवन को नहीं बनाओ। कभी-कभी साइंस के साधन होते हुए भी यूज़ नहीं कर सकेंगे। इसलिए साइलेन्स का साधन - जहाँ भी होंगे, जैसी भी पिरस्थिति होगी बहुत स्पष्ट और बहुत जल्दी काम में आयेगा। लेकिन अपने बुद्धि की लाइन क्लीयर रखना। समझा। आप ही तो आह्वान कर रहे हैं कि जल्दी-जल्दी गोल्डन एज़ आ जावे। तो गोल्डन एज़ में यह सफाई चाहिए ना। तो प्रकृति अच्छी सफाई करेगी।

तो आज के दिन संकल्प नहीं लेकिन दृढ़ संकल्प क्या लिया? एकानामी का अवतार बनना ही है। चाहे संकल्प में, चाहे बोल में, चाहे साधारण कर्म की एकानामी। और दूसरी बात - सदा बुद्धि को क्लीयर रखना। जिसको दूसरे शब्दों में बापदादा कहते हैं - सच्ची दिल पर साहेब राज़ी। सच्ची दिल, साफ दिल। वर्तमान समय में सच्चाई और सफाई की आवश्यकता है। दिल में भी सच्चाई, परिवार में भी सच्चाई और बाप से भी सच्चाई। समझा। आज के दिन कहना नहीं था लेकिन कह दिया। बापदादा का प्यार है ना तो ज़रा भी कमज़ोरी बापदादा देख नहीं सकते। बापदादा सदा हर बच्चे को अपने जैसा सम्पूर्ण देखने चाहते हैं।

चारों ओर हलचल है, प्रकृति के सभी तत्त्व खूब हलचल मचा रहे हैं, एक तरफ भी हलचल से मुक्त नहीं हैं, व्यक्तियों की भी हलचल है, प्रकृति की भी हलचल है, ऐसे समय पर जब इस सृष्टि पर चारों ओर हलचल है तो आप क्या करेंगे? सेफ्टी का साधन कौन-सा है? सेकण्ड में अपने को विदेही, अशरीरी वा आत्म-अभिमानी बना लो तो हलचल में अचल रह सकते हो। इसमें टाइम तो नहीं लगेगा? क्या होगा? अभी ट्रायल करो - एक सेकण्ड में मन-बुद्धि को जहाँ चाहो वहाँ स्थित कर सकते हो? (ड्रिल) इसको कहा जाता है - ‘‘साधना’’। अच्छा।

देश-विदेश के चारों ओर के बाप के लव में लवलीन आत्माओं को, सदा स्वयं को ब्रह्माचारी स्थिति में स्थित करने वाले स्नेही, सहयोगी बच्चों को, सदा एकनामी और एकानामी को कार्य में लगाने वाले हिम्मतवान बच्चों को, सदा हलचल में भी अचल रहने वाले निर्भय आत्माओं को, सदा मौज मनाने वाले, बाप के समीप रहने वाले बच्चों को यादप्यार और नमस्ते।

बच्चों के सब कार्ड मिले। बापदादा देख रहे हैं, सभी ने जन्म दिन के कार्ड और फॉरेन वालों ने प्यार के दिवस के कार्ड भेजे हैं, तो प्यार का सागर बाप सभी बच्चों को शिवरात्रि के साथ-साथ प्यार के लवलीन दिवस की भी मुबारक दे रहे हैं। मुबारक हो, मुबारक हो, मुबारक हो।

दादियों से

फॉरेन भी अच्छा आगे बढ़ रहा है। अभी बचपन पूरा हुआ। अभी अच्छे अनुभवी हो गये हैं। पहले जो बचपन होता था ना वह अभी मैजारिटी का खत्म हो गया है। भारत में भी वृद्धि अच्छी है। 9 लाख चाहिए, वह तो बन रहे हैं ना। माला भी बन रही है तो 9 लाख भी बन रहे हैं। दोनों ही बन रहे हैं। लास्ट सो फास्ट भी कोई-कोई आ रहे हैं। अच्छा है। बापदादा तो लास्ट नम्बर वाले पर भी खुश हैं। बाप को तो पहचान लिया है।

(झण्डा लहराने के पश्चात बापदादा के उच्चारे हुए मधुर महावाक्य)

आज बाप और बच्चों के दोनों के बर्थ डे की मुबारक हो, मुबारक हो, मुबारक हो। जैसे अभी सभी खूब खुशी में नाच रहे हैं, ऐसे अमर भव! जैसे यह झण्डा लहराया और पुष्पों की वर्षा हुई, ऐसे ही सदा अपने दिल में बाप की याद का यह झण्डा लहराता रहे। नीचे ऊपर नहीं हो। कभी भी याद का झण्डा नीचे नहीं हो, ऊँचा हो। तो दुनिया वाले अहो भाग्य, अहो बाप यह पुष्पों की वर्षा दुआओं के साथ आप सबके ऊपर करेंगे। तो एक तरफ याद का झण्डा लहराओ, दूसरे तरफ जो आज बाप का सन्देश मिला - एकानामी का अवतार बनो, तो ऐसे दृढ़ संकल्प का झण्डा अपने दिल में लहराना। और साथ में सेवा के प्रति सदा चारों ओर सर्व आत्माओं के आगे बाप को प्रत्यक्ष करने का झण्डा लहराना। यह है झण्डे का महत्त्व। एक दिन आयेगा, आया-कि-आया जब सब लोग बाप की महिमा करते, प्रत्यक्षता के झण्डे के नीचे आयेंगे। सहारा लेंगे और आप सहारे दाता बाप के बच्चे, मास्टर सहारे दाता होंगे। आया-कि-आया। अच्छा।

चारों ओर के देश, शहर, गाँव, चारों ओर के बच्चों को, सबसे पहले छोटे-छोटे गाँव वाले बच्चों को याद-प्यार और मुबारक। साथ में आप सबको भी मुबारक। कितनी मुबारक दें। जितना आप धारण कर सकते हो उससे भी ज्यादा मुबारक।